कल सैयारा फ़िल्म देखने का मौका मिला । हॉल में कुल 20 लोग भी नहीं थे ।मैं पूरी फ़िल्म के दौरान यही ढूँढ रहा था कि मुझे इसमें रोना कब है । जब इंटरवल तक रोना नहीं आया तो सोचा शायद भूख के कारण भीतर से रोने का माहौल नहीं बन रहा । कोक,पिज़्ज़ा और पॉपकॉन गटकने के बाद कमर कस चुका था कि अब तो रोना ही है । सच कह रहा हूँ कि मैं रोने के लिए तरस गया ।कई बार तो भीतर भीतर इस बात का रोना आ रहा था कि मुझे रोना नहीं आ रहा । अपने लिए घृणित भाव पैदा होने लगे कि मैं कैसा हूँ ,मेरे भीतर कोई दया धर्म है कि नहीं ।मैं एक छोटी सो सामाजिक जिम्मेदारी भी पूरी नहीं कर पा रहा ।बस रोना ही तो है थोड़ा सा बस इस सा कि मेरे पड़ोस वाले को पता लग जाये ये रो रहा है । खैर फ़िल्म देखकर रोना हो तो “मैरी कॉम”देख लीजिएगा । एक महिला के वास्तविक संघर्ष को जिस तरह से पर्दे पर लाया गया और उसने जिन हालातों से निकल कर देश के लिए खेला,जीता और देश का सम्मान बढ़ाया ।बिना किसी दिखावे के आपके नयन कोर पर कुछ बूंदे अटक ही जाएँगी ।। Got a chance to watch Saiyaara yesterday. Barely 20 people in the theatre. Spent the whole movie wondering...