ये मोबाइल यूँ ही हट्टा कट्टा नहीं बना... बहुत कुछ खाया - पीया है इसने ये हाथ की घड़ी खा गया, ये टॉर्च - लाईट खा गया, ये चिट्ठी पत्रियाँ खा गया, ये किताब खा गया। ये रेडियो खा गया ये टेप रिकॉर्डर खा गया ये कैमरा खा गया ये कैल्क्युलेटर खा गया। ये पड़ोस की दोस्ती खा गया, ये मेल - मिलाप खा गया, ये हमारा वक्त खा गया, ये हमारा सुकून खा गया। ये पैसे खा गया, ये रिश्ते खा गया, ये यादास्त खा गया, ये तंदुरूस्ती खा गया। कमबख्त इतना कुछ खाकर ही स्मार्ट बना, बदलती दुनिया का ऐसा असर होने लगा, आदमी पागल और फोन स्मार्ट होने लगा। जब तक फोन वायर से बंधा था, इंसान आजाद था। जब से फोन आजाद हुआ है, इंसान फोन से बंध गया है। ऊँगलिया ही निभा रही रिश्ते आजकल, जुबान से निभाने का वक्त कहाँ है? सब टच में बिजी है, पर टच में कोई नहीं है।