क्या घर के नक्शे से ड्राइंग रूम का कांसेप्ट खत्म कर देना चाहिए..??? त्योहारों के अवसर पर संदेशे तो बहुत आते, लेकिन मेहमान कोई नही आता। सोचता हूँ ड्राइंग रूम से सोफा हटा दूं या ड्राइंग रूम का कांसेप्ट बदलकर वहां स्टडी रूम बना दूं। दो दिन से व्हाट्स एप और एफबी के मेसेंजर पर मेसेज खोलते, स्क्रॉल करते और फिर जवाब के लिए टाइप करते- करते दाहिने हाथ के अंगूठे में दर्द होने लगा है, संदेशें आते जा रहे हैं। बधाईयों का तांता है, लेकिन मेहमान नदारद है। ये है आज के दौर के तीज त्यौहार... मित्रों, घर के आसपास के पड़ोसियों को मिला कर त्यौहारों पर मिलने जुलने का रिवाज़ खत्म हो चला है। पैसे वाले दोस्त और अमीर किस्म के रिश्तेदार मिठाई या गिफ्ट तो भिजवाते है लेकिन घर पर बेल ड्राईवर बजाता है। वो खुद नही आते। *दरअसल घर अब घर नही रहा। ऑफिस के वर्क स्टेशन की तरह घर एक स्लीप स्टेशन है। हर दिन का एक रिटायरिंग बेस। आराम करिए, फ्रेश हो जाईये। घर अब सिर्फ घरवालों का है, घर का समाज से कोई संपर्क नही है। मेट्रो युग में समाज और घर के बीच तार शायद टूट चुके हैं। हमे स्वीकार करना होगा कि ये बचपन वाला घर नही रहा...